महर्षि दयानन्द के प्रिय शिष्य स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती जी ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति तथा वैदिक ज्ञान को सुविस्तरित करने के लिये 4 अप्रैल 1891 में आर्य प्रतिनिधि सभा के सहयोग से लाहौर आर्य प्रतिनिधि सभा के अन्तर्गत शोध विभाग की स्थापना की। इस विभाग के गठन के मूल यह उद्देश्य था कि देश के समक्ष ऐसे ग्रन्थ प्रस्तुत किये जायें, जिससे प्राचीन भारतीय मनीषा का लाभ प्रत्येक देशवासी को मिल सके। गुरुकुल काँगड़ी समविश्वविद्यालय, हरिद्वार तथा वैदिक शोध संस्थान में समन्वय बैठाने के लिये 1920 में शोध विभाग को लाहौर से गुरुकुल काँगड़ी समविश्वविद्यालय, हरिद्वार लाया गया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने सन् 1991 में इस विभाग को विधिवत् मान्यता प्रदान करते हुए प्रोफेसर, रीडर और प्रवक्ता के तीन पद प्रदान किये। शोध के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हुए विभाग ने महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं को पूर्ण किया है और वर्तमान समय तक विभाग से 60 से अधिक भाग प्रकाशित हो चुके हैं और कतिपय प्रकाशन के क्रम में हैं।